महाकुंभ: 45 दिन में 66 करोड़ स्नान... तीन राज्यों और लोकसभा चुनाव 2029 में दिखेगा असर?

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प्रयागराज का नाम तब इलाहाबाद था. बात साल 2013 की है. कुंभ में बड़े संत सम्मेलन से पहले विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन सबसे बड़े नेता अशोक सिंघल ने कहा था कि नरेंद्र मोदी को लेकर ऐसा फैसला कुंभ में होगा कि इतिहास बदल जाएगा. साल 2001 में सोनिया गांधी ने कुंभ स्नान किया. तीन साल बाद यूपीए की दस साल तक चलने वाली सरकार बनी. साल आया 2019. लोकसभा चुनाव से 15 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयाग के अर्धकुंभ में डुबकी लगाई. पांच सफाई कर्मचारियों के पैर तब पीएम ने धोए थे. इतिहास गवाह रहा है संगम किनारे कुंभ से निकली दस्तक भविष्य की चुनावी राजनीति में बड़ी हलचल लाती रही है. क्या वैसा ही खेला महाकुंभ से इस बार भी हो सकता है?

प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के मिलन वाले संगम का जल बंगाल की सियासत तक पहुंचने लगा है. जिस पश्चिम बंगाल के गंगा सागर में जाकर गंगा समाहित होती है, उसी बंगाल तक महाकुंभ वाला संगम जल कलश के साथ पहुंच रहा है. और तब इस सियासी दस्तक को ध्यान से समझने की जरूरत है कि क्या जिस महाकुंभ में 45 दिन में 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने स्नान किया है, उस महाकुंभ का असर 2025 में बिहार, 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव समेत 2029 के लोकसभा चुनाव तक बड़ा असर दिखाने वाला है?

सवाल सुनकर आपको संभव है ये लगा हो कि चार साल बाद तक के चुनावों में महाकुंभ के असर की दस्तक किस आधार पर हम परखने लगे हैं? जवाब ये है कि जिस देश में 2024 के लोकसभा चुनाव में 80 दिन के भीतर कुल 64 करोड़ 40 लाख लोगों ने मतदान किया. वहीं 2025 में 45 दिन के भीतर 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने आकर महाकुंभ में स्नान किया है. यानी मतदान से ज्यादा कुंभ स्नान. और इतिहास गवाह है कि कुंभ से निकली दस्तक से हलचल हर बार बड़ी निकली है.

2019 में किसी पीएम ने 42 साल बाद कुंभ में किया स्नान

2013 के प्रयाग कुंभ में 7 फरवरी धर्म संसद में नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर संतों ने समर्थन किया था और 2014 में वह प्रधानमंत्री बने. 12 साल पहले नरेंद्र मोदी तब कुंभ स्नान करने तो नहीं पहुंच पाए थे. लेकिन 2019 के अर्धकुंभ में प्रधानमंत्री ने संगम स्नान तब किया था, जब लोकसभा चुनाव का ऐलान होने में 15 दिन बाकी थे. तब 42 साल बाद किसी प्रधानमंत्री ने संगम में स्नान किया था. कारण, नरेंद्र मोदी से पहले इंदिरा गांधी 25 जनवरी 1966 को पीएम बनने के अगले ही दिन कुंभ मे संगम पहुंची थीं. इंदिरा गांधी दूसरी बार कुंभ तब पहुंचीं जब 1977 में इमरजेंसी के दौरान लोकसभा भंग करने का ऐलान किया था. संतों का विरोध इंदिरा गांधी को देखना पड़ा था. तब 1977 में कुंभ के बाद देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी. 

फरवरी 1989 में, कुंभ के दौरान ही संतों के सम्मेलन में ये ऐलान हुआ कि 9 महीने बाद राम मंदिर शिलान्यास किया जाएगा. 2001 में सोनिया गांधी प्रयाग कुंभ में संगम स्नान करने पहुंची थीं. जबकि 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा था. 2001 के कुंभ के दौरान ही अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल वीएचपी ने सबके सामने रखा था. इतिहास ये याद दिलाने के लिए कि दशकों से कुंभ से निकला संदेश सियासत में लंबी दूरी तक पहुंचता है. तब क्या प्रयागराज में चले 45 दिन के महाकुंभ से भी राजनीति में खेला हो सकता है.

चुनाव से एक साल पहले ही बंगाल में दिखने लगी बेचैनी

जिसकी बेचैनी 14 महीने बाद चुनावी मैदान में आने वाले राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में दिखने लगी है. अभी चुनाव बिहार में होने वाला है. अगले साल अप्रैल में जाकर पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव होना है. उससे पहले पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में बीजेपी नेता नारायण चट्टोपाध्याय कलश में कुंभ से संगम जल लेकर बीजेपी दफ्तर पहुंचे. बीजेपी के नेता अगर कुंभ का जल लाकर कोलकाता में शुद्धि इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि ममता बनर्जी ने महाकुंभ को मृत्युकंभ कहा तो ममता भी ये बात समझने लगी हैं कि इस बार बीजेपी कुंभ का चक्रव्यूह रच सकती है.

ये ममता बनर्जी का आत्मविश्वास है या फिर ममता आशंकित हैं. जहां मृत्युकुंभ कहे जाने के बाद से ही ममता को घेरने के लिए बीजेपी रणनीति बनाने लगी. वहीं ममता अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहती हैं कि चिंता मत करो खेला होगा. ये खेला की बात अभी से ममता के कहने के पीछे जो सियासत है, उसको समझने की जरूरत है. कारण, पश्चिम बंगाल में 70 फीसदी आबादी हिंदू है जबकि 30 फीसदी आबादी मुस्लिम है. लोकनीति-CSDS की रिसर्च के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिम बंगाल में कुल हिंदू वोट का 57 फीसदी हिस्सा एक साथ मिला. जबकि ममता बनर्जी को कुल मुस्लिम वोट का 70 फीसदी हिस्सा एक साथ 2019 में मिला. 2019 में 2014 के मुकाबले 36% ज्यादा हिंदू वोट बीजेपी को मिले, इसलिए पार्टी 18 सीट तक पहुंची. लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2014 के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा मुस्लिम वोट 2019 में पाने के कारण बीजेपी से 4 सीट ज्यादा यानी 22 सीट टीएमसी पश्चिम बंगाल में जीत पाई है. 

बंगाल में जीत दर्ज करेगी बीजेपी?

2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने वापस कमबैक किया है. 42 में से 29 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को 6 सीटों का नुकसान हुआ और वह 12 सीटों पर सिमट गई. लेकिन अब दो तथ्य सियासत में देखे जा रहे हैं. पहला केवल मुस्लिम वोट एकमुश्त मिलना जीत की गारंटी नहीं. और दूसरी बात पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का हिंदू वोट घट रहा है. तब सवाल उठता है कि महाकुंभ से निकला हिंदू एकता संदेश और ममता के कुंभ पर उठाए सवालों के साथ चुनाव जब होंगे तब 16 साल के लगातार शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी हवा थोड़ी भी हुई तो क्या बंगाल पहली बार बीजेपी जीत सकती है?

वहीं लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ऐतिहासिक जीत के बावजूद भी अगर अपने दम पर अकेले बहुमत वाली सीट इस बार नहीं पाई तो इसकी वजह हिंदू वोट है. क्योंकि मुस्लिम वोट लगातार विपक्षी दलों को 10 में 9 तक मिलता है लेकिन जिस हिंदू वोट को बीजेपी ने बड़े स्तर पर 2014 से जोड़ा वो बाद में बंटने लगा. याद करिए फिर दो नारे आए. एक नारा- बंटेंगे तो कटेंगे. दूसरा नारा- एक हैं तो सेफ हैं. इनका जिक्र महाराष्ट्र चुनाव तक तो हुआ लेकिन दिल्ली चुनाव में ये नारे नहीं लगे. तो क्या अब आगे इनकी जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि महाकुंभ ने अब वो लकीर खींच दी है, जहां सवाल उठाने वाले एक तरफ. आस्था से डुबकी लगाने वाले दूसरी तरफ हैं.

महाकुंभ ने जोड़ा होगा हिंदू वोट?

2024 के लोकसभा चुनाव में NDA को मुस्लिमों का केवल 8% वोट मिला. INDIA गठबंधन को 65% मुस्लिम वोट मिला. बड़े राज्यों में देखें तो यूपी में INDIA गठबंधन को 92 फीसदी मुस्लिम वोट मिला. बीजेपी को 8 फीसदी. कर्नाटक में 92 फीसदी कांग्रेस गठबंधन मुस्लिम वोट पाया और 8 फीसदी बीजेपी. मध्य प्रदेश में मुस्लिम वोट 86 फीसदी कांग्रेस के साथ गया, 6 फीसदी बीजेपी को. बिहार में इंडिया गठबंधन 87 फीसदी पाया. एनडीए 12 फीसदी मुस्लिम वोट पाया. राजस्थान में INDIA को 70 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था. NDA को 14%. पश्चिम बंगाल में 73 फीसदी मुस्लिम वोट टीएमसी पाई. 7 फीसदी बीजेपी. हिंदू वोट बंटता है. मुस्लिम वोट एकजुट पड़ता है. नतीजा बीजेपी जानती है कि उसे हिंदुत्व के संगम से ही वोट मिलेगा तो जीत मिलेगी. तब सवाल ये भी उठता है कि क्या महाकुंभ ने अब हिंदू वोट को औऱ जोड़ा होगा?

Article From: www.aajtak.in
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