चंपाई सोरेन के अलग पार्टी बनाने से बीजेपी को फायदा! झारखंड की 14 सीटों पर पड़ेगा सीधा असर

2 months ago 14

दिल्ली में तीन दिनों तक एक आलीशान होटल के बाहर कैमरा यूनिट्स तैनात रहीं. सभी झारखंड के पूर्व सीएम चंपाई सोरेन की एक झलक को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे. उम्मीद थी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व के साथ उनकी बैठक होगी. हालांकि, चंपाई सोरेन भाजपा के साथ किसी भी बैठक के बिना ही दिल्ली से चले गए. या ये भी कहा जा सकता है कि किसी भी मीटिंग की सार्वजनिक तौर पर कोई चर्चा नहीं हुई.

चंपाई सोरेन जब झारखंड में अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र सरायकेला पहुंचे तो कोल्हान के टाइगर ने घोषणा की कि उनके जीवन का एक अध्याय शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि वे या तो अपना नया राजनीतिक दल शुरू करेंगे या इस नई यात्रा के दौरान किसी से हाथ मिलाएंगे.

चंपाई सोरेन के करीबी सूत्र ने इंडिया टुडे को बताया कि झारखंड के पूर्व सीएम जल्द ही अपना नया गुट बनाएंगे. शीर्ष सूत्रों ने कहा कि वह झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले अपना गुट शुरू करेंगे. चंपाई का झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के पाले में वापस लौटने का सवाल ही नहीं उठता. चंपाई सोरेन के करीबी लोगों का कहना है कि JMM के दिग्गज नेता बागी बन गए हैं, लेकिन वह अपने नए गुट के लिए JMM को नहीं तोड़ेंगे. हालांकि, सूत्रों का कहना है कि जेएमएम के कुछ नेता चंपाई सोरेन के संपर्क में हैं और बागी विधायक चमरा लिंडा जैसे नेता नए गुट का हिस्सा बन सकते हैं. 

कोल्हान में चंपाई को केंद्रित क्यों रखना चाहती है BJP

चंपाई सोरेन पार्टी के संरक्षक शिबू सोरेन के बाद झामुमो में सबसे वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं. झामुमो में उनका कद इस बात से समझा जा सकता है कि जब हेमंत सोरेन ने ईडी की गिरफ्तारी के कारण झारखंड के मुख्यमंत्री पद से हटने का फैसला किया तो उनके कैबिनेट सहयोगी जोबा माझी की जगह चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया.

सीएम पद से हटाने के बाद बनाया कैबिनेट मंत्री

रांची जेल से रिहा होने के बाद 4 जुलाई को हेमंत सोरेन सीएम ऑफिस लौट आए. चंपाई सोरेन को झारखंड कैबिनेट में नए शिक्षा मंत्री के तौर पर शामिल किया गया, हालांकि, यह बात 'कोल्हान के टाइगर' को रास नहीं आई. अब चंपाई सोरेन फिर से कह रहे हैं कि उन्होंने 3 जुलाई को ही अपने जीवन का नया अध्याय शुरू करने का फैसला कर लिया था. चंपाई सोरेन कह रहे हैं कि या तो वे जल्द ही अपनी पार्टी बनाएंगे या फिर अपने सपनों का झारखंड बनाने की यात्रा में 'किसी साथी' से हाथ मिलाएंगे.

बीजेपी को कौन सा कदम उठाने पर मिलेगा फायदा

चंपाई सोरेन के इस फैसले के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि इस मामले में भाजपा के लिए बेहतर विकल्प क्या है? झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री को भाजपा में शामिल करना या उन्हें नया संगठन बनाने में मदद करना? इसका स्पष्ट जवाब है कि झामुमो के बागी नेता के नेतृत्व में एक नया राजनीतिक संगठन शुरू होने से बीजेपी को फायदा मिलेगा. बीजेपी 2024 के झारखंड चुनावों में नए गुट से गठबंधन नहीं करेगी.

रघुबर दास को करना पड़ा था हार का सामना

दरअसल, कोल्हान डिवीजन में 14 विधानसभा क्षेत्र हैं. 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने इस डिवीजन में भाजपा को करारी शिकस्त दी थी. भगवा पार्टी कोल्हान में अपना खाता खोलने में विफल रही और तब के सीएम रघुबर दास को भाजपा के बागी सरयू रॉय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

कोल्हन के नतीजों ने ही JMM को दिलाई थी जीत!

आदिवासी बहुल इलाके कोल्हान की वजह से ही JMM ने 2019 के विधानसभा चुनावों में अपनी जीत पक्की की थी. मोदी लहर और राम मंदिर लहर के बावजूद, हेमंत सोरेन की JMM ने 14 विधानसभा क्षेत्रों में से 11 पर जीत हासिल की और दो पर कांग्रेस ने कब्जा किया था. इन नंबरों के कारण ही JMM ने झारखंड चुनावों में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ चुनावी नंबर दर्ज किया था.

चंपाई सोरेन की कोल्हान में पकड़ काफी मजबूत

दरअसल, कोल्हान क्षेत्र में चंपाई सोरेन की मजबूत पकड़ का इतिहास काफी पुराना है. उन्हें मजदूर वर्ग के नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड के लिए लड़ाई लड़ी. उन्हें खुद इस बात पर गर्व है कि इस क्षेत्र के स्थानीय गांवों के 10 हजार से ज्यादा युवाओं को टाटा समूह जैसे औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नौकरी मिली.

JMM को चुकानी होगी इस बगावत की कीमत

अगर चंपाई सोरेन 2024 के चुनावी मैदान में अकेले उतरते हैं, तो भाजपा को ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद है. सीमित संसाधनों के साथ, झारखंड के पूर्व सीएम खुद को कोल्हान डिवीजन की विधानसभा सीटों पर केंद्रित रखेंगे. जबकि उम्मीद है कि चंपाई सोरेन सरायकेला विधानसभा क्षेत्र को बरकरार रखने में सक्षम रह सकते हैं. वह अपने नए संगठन के लिए कम से कम एक और विधानसभा क्षेत्र जीत सकते हैं, जिसकी कीमत JMM को चुकानी होगी.

जेडीयू और LJP जैसा बना सकता है समीकरण

चंपाई सोरेन 2021 में बिहार में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के साथ चिराग पासवान की LJP (R) की तरह ही कुछ कर सकते हैं. LJP ने अकेले चुनाव लड़ा था, लेकिन माना गया कि उनके उम्मीदवारों ने जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाई थी. हालांकि चिराग पासवान की पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत पाई, लेकिन इसने कई विधानसभा सीटों पर जेडीयू की हार में अहम भूमिका निभाई थी.

चंपाई की बगावत से कम होगा JMM का वोट शेयर

इसी तरह, अगर चंपाई सोरेन के उम्मीदवार आदिवासी बहुल कोल्हान निर्वाचन क्षेत्रों में से प्रत्येक में मात्र 5000 वोट भी हासिल करने में सक्षम होते हैं तो यह जेएमएम और INDIA एलायंस के लिए घातक साबित हो सकता है. आंकड़ों के मुताबिक, इससे इन निर्वाचन क्षेत्रों में जेएमएम के वोट शेयर में कमी आएगी और भाजपा के लिए जीत का अवसर पैदा होगा.

बगावत से क्यों नहीं घबरा रही है हेमंत की JMM

झामुमो के साथ सुलह की कोशिशें भी आसान नहीं लग रही हैं. खुद चंपाई सोरेन ने इसकी पुष्टि की है. दिल्ली से निकलते समय चंपाई सोरेन ने कहा था कि हेमंत सोरेन और सुप्रियो भट्टाचार्य सहित झामुमो के शीर्ष नेतृत्व में से किसी ने भी उनसे संपर्क नहीं किया. कागजों पर तो चंपाई की रणनीति झामुमो के लिए घातक लग रही है, लेकिन हेमंत सोरेन की पार्टी घबराने की स्थिति में नहीं है. झामुमो के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि उनके शीर्ष नेतृत्व ने 'वेट एंड वॉच' अपनाई है. झामुमो का आत्मविश्वास झारखंड की राजनीति में ऐसे बागियों के इतिहास से भी उपजा हो सकता है.

पुराने बागियों का हश्र देखकर नहीं ले रहे टेंशन

जेएमएम के एक सीनियर सांसद ने इंडिया टुडे को बताया,'राज्य की राजनीति में बागियों का क्या हश्र होता है, यह देखना होगा. सीता सोरेन का क्या हुआ? उन्होंने जेएमएम छोड़ दी और लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. गीता कोड़ा बीजेपी में शामिल हो गईं और लोकसभा चुनाव में जोबा माझी के हाथों हार गईं.' उन्होंने जोर देकर कहा कि बाबूलाल मरांडी, जो अब झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष हैं खुद इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं कि कैसे बागी गुट अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे हैं.

JMM की एक परेशानी भी अब हो गई है दूर 

जेएमएम को इसलिए भी भरोसा है, क्योंकि उसका मानना ​​है कि हेमंत सोरेन की लोकप्रियता इस समय अपने चरम पर है. कल्पना सोरेन के आने से जेएमएम के पास सिर्फ एक स्टार प्रचारक होने की परेशानी भी दूर हो गई है. उनका मानना ​​है कि चंपाई सोरेन के जल्दी बाहर होने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि साल के अंत में जब चुनाव होंगे, तब तक उनके विद्रोह का असर कम हो.

Article From: www.aajtak.in
Read Entire Article



Note:

We invite you to explore our website, engage with our content, and become part of our community. Thank you for trusting us as your go-to destination for news that matters.

Certain articles, images, or other media on this website may be sourced from external contributors, agencies, or organizations. In such cases, we make every effort to provide proper attribution, acknowledging the original source of the content.

If you believe that your copyrighted work has been used on our site in a way that constitutes copyright infringement, please contact us promptly. We are committed to addressing and rectifying any such instances

To remove this article:
Removal Request