गुजरात के एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुल्डोजर जस्टिस पर सवाल खड़े किए. जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि किसी शख्स के किसी केस में महज आरोपी होने के चलते उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता है. आरोपी का दोष बनता है या नहीं, यानी क्या उसने ये अपराध किया है, ये तय करना कोर्ट का काम है सरकार का नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन वाले इस देश में किसी शख्स की गलती की सजा उसके परिजनों को ऐसी कार्रवाई करके या उसके घर को ढहाकर नहीं दी जा सकती. कोर्ट इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को नजरंदाज नहीं कर सकता. ऐसी कार्रवाई को होने देना कानून के शासन पर ही बुलडोजर चलाने जैसा होगा. अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश गुजरात के जावेद अली नाम के याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. याचिकाकर्त्ता का कहना था कि परिवार के एक सदस्य के खिलाफ FIR होने के चलते उन्हें नगर निगम से घर गिराने का नोटिस यानी धमकी दी गई है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां करीब दो दशकों से उक्त घरों में रह रही हैं.
याचिकाकर्ता के अनुसार, जब एक सितंबर 2024 को परिवार के एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात आई, तो नगर निगम अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के परिवार के घर को बुलडोजर से गिराने की धमकी दी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए निगम और स्थानीय प्रशासन को नोटिस जारी किया है.