केजरीवाल और ममता में बहुत फर्क है, विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना जोखिम भरा होगा

7 months ago 14

अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव लड़ कर भले ही कोई फायदा न उठा पाये हों, लेकिन दूर होकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान उठा सकते हैं. दिल्ली सहित कई राज्यों में आम आदमी पार्टी विपक्ष के इंडिया गठबंधन का हिस्सा रही - लेकिन पंजाब चुनाव में AAP और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे. 

दिल्ली में जहां कांग्रेस को भी आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन का कोई फायदा नहीं मिला, वहीं पंजाब में अकेले लड़ते हुए भी कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 13 में से 7 लोकसभा सीटें जीत ली थी. पंजाब में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को महज तीन सीटें ही मिल पाईं - केंद्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ की महज एक सीट ऐसी थी जहां से कांग्रेस और आप गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में मनीष तिवारी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं.

दिल्ली में केजरीवाल का 'एकला चलो...' स्टैंड

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के दो दिन बाद ही दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने बोल दिया कि आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ नहीं, बल्कि अकेले ही लड़ेगी.  

ये तो कुछ कुछ वैसे ही हुआ जैसे ममता बनर्जी कहती हैं कि तृणमूल कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन का ही हिस्सा है, लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव वो अकेले लड़ती हैं. स्पीकर चुनाव के दौरान भी ममता बनर्जी के स्टैंड से ऐसा लगा था कि वो विपक्ष से अलग रुख अपनाएंगी, लेकिन राहुल गांधी के फोन के बाद वो मान भी गईं. 

नंबर के हिसाब से भले ही पश्चिम बंगाल के मुकाबले दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल का प्रदर्शन बेहतर रहा हो, लेकिन ममता बनर्जी का अभी वो बराबरी नहीं कर सकते. ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बना दिया हो, और पश्चिम बंगाल की तरह दिल्ली विधानसभा में भी बीजेपी की राह में दीवार बन कर खड़े हो जाते हों - लेकिन ममता बनर्जी उनसे कहीं आगे हैं. 

ममता बनर्जी डंके की चोट पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव भी जीत रही हैं, और लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को पछाड़ने में सफल रही हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली की एक भी सीट अपने बूते कौन कहे, कांग्रेस के साथ गठबंधन करके भी नहीं जीत पाये हैं - और पंजाब की बात है तो वहां 2014 में भी चार सांसद हुए थे, जबकि अरविंद केजरीवाल खुद वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चुनाव हार गये थे.

मान लेते हैं दिल्ली में बीजेपी का प्रयोग भारी पड़ा, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी कैसे चूक गई, और कांग्रेस ने कैसे आप से बेहतर जीत दर्ज की?

अरविंद केजरीवाल को ये नहीं भूलना चाहिये कि पंजाब की तरह दिल्ली में भी कांग्रेस नुकसान पहुंचा सकती है - और कांग्रेस जिस तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है, उसका भी पंजाब कनेक्शन है. 

कांग्रेस से दूर होने से AAP को क्या नुकसान होगा

पंजाब में सत्ताधारी आप के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़कर मिली सफलता के बाद दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये हैं. 

ध्यान देने वाली बात ये है कि देवेंद्र यादव पंजाब के चुनाव प्रभारी भी हैं - और पंजाब में मिली कामयाबी को अब दिल्ली में भी भुनाने की कोशिश में जुट गये हैं. 

देवेंद्र यादव पंजाब के सांसदों को दिल्ली के पंजाबी और सिख बहुल इलाकों में उतार कर दिल्ली में भी पंजाब जैसा ही कैंपेन शुरू करने का प्लान बना रहे हैं - और इसके लिए वो पंजाब के सांसदों के साथ साथ बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को भी मोर्चे पर तैनात करने जा रहे हैं. 

दिल्ली के जिन इलाकों के लिए कांग्रेस ने ये कार्यक्रम बनाया है, वे हैं - तिलक नगर, हरि नगर, राजौरी गार्डन और द्वारका. रिपोर्ट के मुताबिक, ये मिशन जुलाई से शुरू हो जाएगा. कार्यक्रम ये बना है कि पंजाब के कांग्रेस नेता दिल्ली में 10 दिन तक डेरा डाल कर लोगों से मुलाकात करेंगे और आम आदमी पार्टी की जगह कांग्रेस को वोट क्यों दें, ये भी पंजाब की ही तरह समझाएंगे - ये कार्यक्रम चुनाव तक हर महीने चलता रहेगा. 

चुनाव कैंपेन के दौरान कांग्रेस नेता दिल्ली की केजरीवाल सरकार के साथ साथ पंजाब की भगवंत मान सरकार की नाकामियों और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाएंगे - भला केजरीवाल के लिए इससे ज्यादा नुकसानदेह क्या हो सकता है.

केजरीवाल के पास वक्त बहुत कम है

चुनावी तैयारियों के लिए आम आदमी पार्टी के पास मुश्किल से 6 महीने बचे हैं, और सबसे मुश्किल बात ये है कि अरविंद केजरीवाल को अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है. जिस तरह से ईडी के बाद सीबीआई ने शराब घोटाला केस में अरविंद केजरीवाल पर शिकंजा कसा है, और वो भी निचली अदालत से मिली जमानत पर दिल्ली हाई कोर्ट की रोक के ठीक बाद - अरविंद केजरीवाल के लिए अब जल्दी बाहर निकल पाना मुमकिन तो नहीं लगता. 

हो सकता है, लोकसभा चुनाव की तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव के नाम पर भी अरविंद केजरीवाल को कैंपेन के लिए अंतरिम जमानत मिल जाये, लेकिन दिल्ली के नतीजे तो निराश ही करते हैं - और ऐसे हालात में आम आदमी पार्टी का दिल्ली चुनाव में अकेले उतरने का फैसला काफी जोखिमभरा लगता है.
 

Article From: www.aajtak.in
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