हिज्बुल्लाह के अंदर दो हफ्ते तक उथल-पुथल मची रही. इसके बाद 30 सितंबर 2024 की रात इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने सटीक जानकारी के आधार पर दक्षिणी लेबनान में हिज्बुल्लाह के खिलाफ सीमित ग्राउंड रेड शुरू की. इसे ऑपरेशन 'नॉर्दर्न एरो' नाम दिया गया. ये ऑपरेशन इजरायली एयरफोर्स के हवाई हमलों और तोपों की गोलाबारी से समर्थित हैं. ये छोटे स्तर के ऑपरेशन हैं, लेकिन माना जा रहा है कि आगे जाकर दक्षिणी लेबनान में बड़े जमीनी हमले की शुरुआत हो सकती है.
इन ग्राउंड ऑपरेशन से पहले इजरायल ने ‘बैटलफील्ड की तैयारी’ की. 17 सितंबर को पेजर अटैक से शुरू हुए हमलों में हिज्बुल्लाह के प्रमुख नेताओं को खत्म कर दिया गया. 27 सितंबर को हिज्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या से यह हमला अपने चरम पर पहुंच गया.
इजरायली हमलों ने हिज्बुल्लाह के संचार नेटवर्क और नेतृत्व ढांचे को तहस-नहस कर दिया. हथियारों के डिपो और रॉकेट लॉन्चिंग प्लेटफॉर्म को भी निशाना बनाकर हिज्बुल्लाह की क्षमता को कमजोर कर दिया. अब जब ग्राउंड ऑपरेशन शुरू हो गए हैं, तो दोनों ताकतों की तुलना करना जरूरी है.
इजरायल vs हिज्बुल्लाह
IDF तकनीकी रूप से कहीं बेहतर, बेहतर सुसज्जित और संगठित है. उसे पश्चिमी के सहयोगियों का समर्थन प्राप्त है. ‘द मिलिट्री बैलेंस 2023’ रिपोर्ट के अनुसार इजरायल की सेना में 1,69,500 सैनिक हैं, जिसमें 1,26,000 सैनिक थल सेना के हैं. इसके अलावा, उनके पास लगभग 1,40,000 रिजर्व सैनिक भी हैं. इजरायल की वायु सेना में आधुनिक लड़ाकू विमानों का बेड़ा है, जिसमें F-15, F-16 और F-35 शामिल हैं. कुल मिलाकर उनके पास लगभग 350 विमान हैं, जो 14 लड़ाकू स्क्वाड्रनों में बंटे हुए हैं. इसके अलावा उनके पास AH-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर के 2 स्क्वाड्रन और कई अन्य सहायक विमान भी हैं. इसके अलावा उनके पास कई प्रकार के सशस्त्र और असशस्त्र ड्रोन भी हैं, जिनमें प्रसिद्ध हेरॉन सशस्त्र ड्रोन शामिल हैं.
वायु रक्षा के मामले में भी IDF को एक बड़ी बढ़त है. उनके पास आयरन डोम (रॉकेट को हवा में ही मार गिराने वाली प्रणाली), डेविड्स स्लिंग, M901 पैट्रियट PAC-2 और एरो एंटी-मिसाइल सिस्टम जैसी कई अत्याधुनिक प्रणालियां हैं. इस तकनीकी बढ़त के चलते IDF लेबनान के लक्ष्यों पर लगातार हमले कर रहा है और साथ ही हिज्बुल्लाह द्वारा दागे गए अधिकतर रॉकेटों को इंटरसेप्ट कर रहा है.
जमीनी बलों की बात करें तो IDF के पास 1,000 से ज्यादा मर्कवा मेन बैटल टैंक, 1200 बख्तरबंद कर्मी वाहक (APC), 500 से अधिक तोपें, जिसमें 30 मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर (MRL) शामिल हैं. इसके अलावा उनके पास अन्य कई हथियार और निगरानी प्रणालियां भी हैं. इसके साथ ही IDF को अमेरिका से खुफिया जानकारी, निगरानी और स्ट्राइक क्षमता का सीधा समर्थन मिलता है.
दूसरी ओर हिज्बुल्लाह काफी हद तक अकेला है क्योंकि ईरान इस संघर्ष में सीधे शामिल नहीं होने वाला है. हिज्बुल्लाह दावा करता है कि उनके पास 1,00,000 से ज्यादा लड़ाके हैं, लेकिन हाल के झटकों से उनकी नेतृत्व क्षमता, दिशा और मनोबल पर गहरा असर पड़ा है.
हालांकि हिज्बुल्लाह की ताकत उसके विशाल रॉकेट और मिसाइल भंडार में है, जो 1,50,000 के करीब है. इन रॉकेटों में कात्युशा जैसे छोटे रेंज वाले रॉकेट शामिल हैं, जिनकी रेंज 30 किमी है. इसके अलावा ईरानी रॉकेट जैसे Raad, Fajr और Zilzal भी उनके पास हैं, जो कात्युशा से ज्यादा शक्तिशाली और लंबी दूरी के हैं. इनके पास बुरकान (वॉल्कैनो) मिसाइल भी हैं, जो 300 से 500 किलोग्राम का विस्फोटक ले जा सकती हैं. हिज्बुल्लाह के पास ईरानी फालक 1 और फालक 2 रॉकेट भी हैं. क़ादर-1 बैलिस्टिक मिसाइल भी हिज्बुल्लाह के शस्त्रागार में है जो 500 किलोग्राम का वॉरहेड ले जा सकती है और इसकी लंबी रेंज है. हिज्बुल्लाह ने 25 सितंबर को पहली बार इस मिसाइल का इस्तेमाल किया जब उन्होंने तेल अवीव को निशाना बनाया.
IDF के ग्राउंड ऑपरेशन का सामना करने के लिए हिज्बुल्लाह के पास रूसी निर्मित कोर्नेट जैसे एंटी-टैंक मिसाइल हैं. 2006 के युद्ध में हिज्बुल्लाह ने इन एंटी-टैंक हथियारों से 50 से अधिक इजरायली मर्कवा टैंकों को नष्ट किया था, जिससे इजरायली आक्रमण रुक गया था.
इस संघर्ष में हिज्बुल्लाह ने पहली बार विस्फोटक ले जाने वाले ड्रोन का भी इस्तेमाल किया है. ये छोटे रेंज वाले ड्रोन हैं, जो सस्ते और बनाने में आसान हैं. फिलहाल हिज्बुल्लाह के पास ईरान और हूती की तरह हाइपरसोनिक मिसाइलें नहीं हैं, जिन्हें IDF इंटरसेप्ट नहीं कर सकता.
हालांकि हिज्बुल्लाह का एक बड़ा फायदा उनके विशेष रूप से प्रशिक्षित और बेहद प्रेरित विशेष बलों में है, जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं. 2006 में उन्होंने इजरायल की सेना को रोका था और इजरायली सेना लितानी नदी तक नहीं पहुंच सकी थी. ये जंग के अनुभवी लड़ाके छोटे दलों में काम करते हैं, छिपे रहते हैं और दुश्मन पर अप्रत्याशित तरीके से हमला करते हैं. इनकी गुप्त सुरंगों और असामान्य युद्ध रणनीति के कारण IDF इन्हें ‘घोस्ट सोल्जर्स’ कहती है. ये अचानक कहीं से भी निकल आते हैं जो इजरायली जमीनी ऑपरेशन के लिए एक बड़ी चुनौती है.
किसके पास है बढ़त?
IDF के पास हिज्बुल्लाह के मुकाबले काफी ज्यादा ताकत है. कुछ सीरियाई और इराकी मिलिशिया समूहों ने समर्थन का वादा किया है, लेकिन इससे इजरायल की मौजूदा ऑपरेशन पर ज्यादा असर नहीं होगा. ईरान ने भी हिज्बुल्लाह का समर्थन करने और इजरायल से बदला लेने का संकल्प लिया है, लेकिन इस वक्त ईरान खुद अराजकता और भ्रम की स्थिति में है. उनके गुटों को भी हाल के हफ्तों में भारी नुकसान हुआ है. ईरान की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह संभावना कम है कि वे सीधे इस युद्ध में शामिल होगा.
इजरायल हालिया सफलताओं से उत्साहित होकर अपनी बढ़त को मजबूत करना चाहता है. वो अपने उत्तरी इलाके में रहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, इससे पहले कि हिज्बुल्लाह फिर से संगठित हो जाए. लेकिन IDF के लिए बेहतर होगा कि वे अपने ग्राउंड ऑपरेशन को छोटे, टीम-आधारित ऑपरेशनों तक सीमित रखे, क्योंकि बड़े स्तर पर आक्रमण करने पर हिज्बुल्लाह के गुरिल्ला लड़ाके हावी हो सकते हैं.
(ओपिनियन: कर्नल राजीव अग्रवाल. कर्नल अग्रवाल एक सैन्य विशेषज्ञ हैं और पश्चिम एशिया मामलों के जानकार हैं. सरकारी सेवा के दौरान उन्होंने मिलिट्री इंटेलिजेंस के डायरेक्टर और विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर के रूप में काम किया है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के