ISRO इस महीने कर सकता है सबसे बड़ा प्रयोग, इसी पर टिका है स्पेस मिशन का भविष्य

1 month ago 10

ISRO के भविष्य के सारे मिशन इस इकलौते लॉन्च पर टिके हैं. ये ही तय करेगा कि भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कैसे बनेगा और चंद्रयान-4 कैसे जाएगा. इस महीने के अंत में इसरो अपना सबसे बड़ा प्रयोग करने जा रहा है. संभावना है कि 30 दिसंबर को SPADEX की लॉन्चिंग हो. लॉन्चिंग PSLV-C60 रॉकेट से की जा सकती है.

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इसरो अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स को जोड़कर स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट करेगा. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

इसरो अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स को जोड़कर स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट करेगा. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

ISRO अपने सबसे बड़े प्रयोग की तैयारी में है. इस प्रयोग की सफलता ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बनने और चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) मिशन की सफलता को तय करेगा. इसलिए यह मिशन बेहद जरूरी है. इसरो सूत्रों की माने तो भारतीय स्पेस एजेंसी SPADEX मिशन की लॉन्चिंग 30 दिसंबर 2024 को कर सकता है. 

लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड से होगी. लॉन्चिंग के लिए PSLV-C60 रॉकेट का इस्तेमाल होगा. क्योंकि दूसरा लॉन्चपैड गगनयान-G1 मिशन की लॉन्चिंग के लिए तैयार किया जा रहा है. उसकी तैयारियां भी अगले हफ्ते से शुरू होने वाली हैं. स्पेडेक्स मिशन में दो अलग-अलग स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़कर दिखाया जाएगा. 

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Spadex, ISRO, Space Docking Experimentये श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर का पहला लॉन्च पैड जहां से हाल ही में प्रोबा-3 सैटेलाइट छोड़ा गया था. (फोटोः ISRO)

अक्तूबर में ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा था कि दिसंबर में इसरो SPADEX (Space Docking Experiment) मिशन कर सकता है. क्योंकि चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) के लिए अंतरिक्ष में डॉकिंग बहुत जरूरी तकनीक है. डॉकिंग मतलब जो अलग-अलग हिस्सों को एकदूसरे की तरफ लाकर उसे जोड़ना. इस समय SPADEX के सैटेलाइट्स का इंटीग्रेशन हो रहा है. एक महीने में ये बनकर तैयार हो जाएंगे. इसके बाद इनकी टेस्टिंग वगैरह होगी. सिमुलेशन होंगे.  

क्यों है जरूरी SPADEX मिशन? 

अंतरिक्ष में दो अलग-अलग चीजों को जोड़ने की ये तकनीक ही भारत को अपना स्पेस स्टेशन बनाने में मदद करेगी. साथ ही चंद्रयान-4 प्रोजेक्ट में भी हेल्प करेगी. स्पेडेक्स यानी एक ही सैटेलाइट के दो हिस्से होंगे. इन्हें एक ही रॉकेट में रखकर लॉन्च किया जाएगा. अंतरिक्ष में ये दोनों अलग-अलग जगहों पर छोड़े जाएंगे. भविष्य में इसी तकनीक के आधार पर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन भी बनाया जाएगा. 

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धरती की निचली कक्षा में होगा प्रयोग

इसके बाद इन दोनों हिस्सों को धरती से निचली कक्षा में जोड़ा जाएगा. ताकि ये फिर से एक यूनिट बन जाएं. इस पूरे प्रोसेस कई तरह के काम होंगे- जैसे दोनों अलग-अलग हिस्से एकदूसरे को खुद से अंतरिक्ष में खोजेंगे. उनके पास आएंगे. ताकि एक ही ऑर्बिट में आ सकें. इसके बाद दोनों एकदूसरे से जुड़ जाएंगे. 

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Article From: www.aajtak.in
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