हेमंत सोरेन के सिर फिर से झारखंड का ताज, अब कितनी जुदा हैं केजरीवाल की चुनौतियां

2 days ago 5

हेमंत सोरेन तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल दोनों पहली बार 2013 में मुख्यमंत्री बने थे. सोरेन जुलाई में, और केजरीवाल दिसंबर, 2013 में. केजरीवाल फरवरी, 2020 में ही लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गये थे.

हेमंत सोरेन की ही तरह अरविंद केजरीवाल भी लंबे समय तक ईडी के समन को नजरअंदाज करते रहे, लेकिन बारी बारी दोनो को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया, और बाद में जेल भेज दिया - दोनो गिरफ्तारियों में एक फर्क भी रहा. अब तो केजरीवाल को सीबीआई भी गिरफ्तार कर चुकी है. 

हेमंत सोरेन ने गिरफ्तार होने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया - बल्कि, वो तो आज की तारीख में भी जेल से ही सरकार चला रहे हैं. ये बात अलग है कि उनकी गैरमौजूदगी दिल्ली सरकार पर भारी पड़ने लगी है, क्योंकि उप राज्यपाल वीके सक्सेना कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन मोड में आ चुके हैं. दिल्ली डायलॉग कमीशन के कर्मचारी ताजातरीन शिकार हैं.

सोरेन और केजरीवाल दोनो के कार्यकाल में अब मुश्किल से करीब 6 महीने ही बचे हैं. झारखंड में इस साल के आखिर में और दिल्ली में अगले साल के शुरू में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं - फर्क ये है कि राजनीतिक तौर पर दोनो की हैसियत बदली हुई लगती है.

हेमंत सोरेन जहां नये जोश के साथ विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर चुके हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल अभी जमानत के लिए जूझ रहे हैं, और ईडी के साथ साथ सीबीआई की गिरफ्तारी को भी चैलेंज कर जेस से ही मुकदमों की निगरानी कर रहे हैं. हाल ही में केजरीवाल ने वकीलों से सलाह मशविरे के लिए एक्सट्रा टाइम की मांग की थी, लेकिन कोर्ट में नामंजूर हो गई. 

सवाल ये है कि एक ही जैसे मामले में दो मुख्यमंत्रियों की मुश्किलें अलग अलग क्यों नजर आ रही हैं - क्या ये दोनो के राजनीति स्टैंड अलग होने के कारण है? अब मुश्किल ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में भाषण के बाद, तो लगता है अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जांच एजेंसियां और भी कहर ढाने वाली हैं.

मामले एक जैसे, राजनीतिक स्टैंड अलग

हेमंत सोरेन को ईडी ने 31 जनवरी, 2024 को लैंड माइंस केस में गिरफ्तार किया था, और 21 मार्च को अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब नीति घोटाला केस में. अरविंद केजरीवाल अब भी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हुए हैं, जबकि गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे चुके हेमंत सोरेन नये सिरे से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. और इसके लिए चंपई सोरेन ने इस्तीफा दे दिया है. 

क्या हेमंत सोरेन के इस्तीफा देकर गिरफ्तार होने का फैसला अरविंद केजरीवाल के स्टैंड से बेहतर माना जाएगा? बेहतर इसलिए क्योंकि अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने के बाद आम आदमी पार्टी नेतृत्वविहीन लग रही है - खासकर लोकसभा चुनाव में मिली नाकामी के बाद से. 

AAP कार्यकर्ताओं का बढ़ा जोश तो तभी देखने को मिला था जब राज्यसभा सांसद संजय सिंह जेल से छूटकर आये थे, जब अरविंद केजरीवाल भी कुछ दिन के लिए आ गये तो कहना ही क्या. अरविंद केजरीवाल अभी आये ही थे कि स्वाति मालीवाल केस हो गया, जिसे वो ठीक से हैंडल नहीं कर पाये. केजरीवाल बाहर आये तो थे चुनाव कैंपेन के लिए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कांग्रेस के मुकाबले बेहद खराब रहा.

क्या अरविंद केजरीवाल भी हेमंत सोरेन की तरफ इस्तीफा दे दिये होते तो दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी बेहतर स्थिति में हो सकते थे? 

देखा जाये तो सिर्फ हेमंत सोरेन ही नहीं, बिहार में लालू यादव और तमिलनाडु में जयललिता को भी मुख्यमंत्री रहते जेल जाना पड़ा था, लेकिन वे भी इस्तीफा देने के साथ ही अपनी जगह अपने भरोसेमंद लोगों को मुख्यमंत्री बना दिया था - तो क्या अरविंद केजरीवाल को कोई भरोसेमंद नहीं मिला जिसे वो कुर्सी सौंप सकें. 

अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार के मामले को याद करके इस्तीफा नहीं देने का फैसला तो नहीं किये थे? नीतीश कुमार ने 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था, लेकिन नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर से बैठने के लिए फिर से काफी जोर लगाना पड़ा था. ये भी हो सकता है, अरविंद केजरीवाल पर कल्पना सोरेन को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा में विरोध का भी असर हुआ हो, और पत्नी सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने का आइडिया मन ही मन ड्रॉप कर दिया हो. 
 
ये सब सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री के जेल में होने के कारण मंत्रियों और आम आदमी पार्टी को सरकार चलाने में काफी मुश्किल हो रही है. अब आतिशी और सौरभ भारद्वाज ऑफिस की फाइलें निबटायें, या केजरीवाल का बचाव करें या फिर दिल्ली उप राज्यपाल से दो-दो हाथ करें - केजरीवाल की बात और है, साथियों के लिए ये सब काफी मुश्किल साबित हो रहा है.

हेमंत सोरेन के जेल में रहते झारखंड सरकार के कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अरविंद केजरीवाल के न्यायिक हिरासत में होने के कारण महिलाओं के खाते में 1000 रुपये दिये जाने वाली योजना शुरू नहीं हो पाई, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत के दौरान निहायत ही जरूरी फाइलों पर ही दस्तखत करने की अनुमति दी थी. अगर केजरीवाल की जगह कोई और दिल्ली का मुख्यमंत्री होता तो किसी भी काम के रुकने की नौबत ही नहीं आती. 

और अरविंद केजरीवाल चाहते तो जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन की तरफ फिर से मुख्यमंत्री बन जाते, क्योंकि अभी तो ये भी किसी को नहीं मालूम कि अरविंद केजरीवाल कब तक जेल से बाहर आ सकेंगे?

क्या केजरीवाल की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं?

अरविंद केजरीवाल अपनी गिरफ्तारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते रहे हैं. संजय सिंह का भी आरोप रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना तिहाड़ जेल में अरविंद केजरीवाल पर 24 घंटे नजर रखते हैं. 

लेकिन राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे सारे ही आरोपों को अपनी स्टाइल में खारिज कर दिया. मोदी ने कहा, ये कांग्रेस वाले बेशर्मी के साथ भ्रष्टाचारी बचाओ आंदोलन चलाने लगे... पहले हमसे पूछ रहे थे कि कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हो... अब जेल जा रहे हैं तो साथ तस्वीरें दिखा रहे हैं... जांच एजेंसियों पर सवाल उठाए गए हैं... घोटाला करें आप... आप की शिकायत करे कांग्रेस... और कार्रवाई हो तो मोदी दोषी. अब ये लोग साथी बन गए हैं. कांग्रेस अब ये बताए कि जो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सबूत बताए थे, क्या वे सबूत झूठे थे. ये ऐसे लोग हैं जिनका दोहरा रवैया है. 

पहले भी प्रधानमंत्री मोदी जांच एजेंसियों के काम की तारीफ कर चुके हैं. कह चुके हैं कि जो काम देश के लोग नहीं कर पाये, जांच एजेंसियों ने कर दिखाया. केजरीवाल के मामले में तो लगता है मोदी के भाषण के बाद सीबीआई और ईडी के अफसरों में नये सिरे से जोश भर चुका होगा - कहीं ये जोश अरविंद केजरीवाल पर भारी तो नहीं पड़ने वाला है?

Article From: www.aajtak.in
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