एक तरफ तो सरकारें जनता से ईमानदारी से टैक्स भरने को कहती हैं और इसी के आधार पर विकास की बात करती हैं. फिर वहीं, जब हर साल बारिश आती है जो टैक्स के बदले विकास के दावों पर पानी ही नहीं फेरती बल्कि दिल्ली, मुंबई,लखनऊ, जयपुर समेत कई बड़े महानगरों और शहरों में सरकारी दावों को डुबा देती है.
तेज बारिश में धुल जाता है विकास
कई महानगरों और शहरों में हर साल कुछ घंटे की तेज बारिश के बाद विकास धुल जाता है और अव्यवस्थाओं की असली तस्वीर जनता को मुंह चिढ़ाती है. जनता टैक्स भरती है, लेकिन उसके बदले हर साल बारिश में कहीं सड़क बह जाती है. कहीं सब वे डूबने लगता है. कहीं रेल की पटरी के नीचे से जमीन खिसक जाती है और कहीं नाले-नाली-रोड के बीच फर्क खत्म हो जाता है.
सरकारें और सरकारी विभाग जलभराव वाली सड़कें देकर करते हैं मानहानि
देश में धर्म और जाति के नाम पर आहत होकर लोग मुद्दा बना लेते हैं, लेकिन हर वर्ष आपके हमारे महानगरों-शहरों के बारिश में डूब जाने पर कोई आहत नहीं होता ? देश में कोई किसी को कुछ कह दे तो मानहानि हो जाती है, लेकिन आपके टैक्स भरने के बाद भी जो सरकारें और सरकारी विभाग आपको बारिश में गंदे पानी से भरी हुई सड़कें देकर आपकी मानहानि करते हैं, उसकी बात कोई नहीं करता.
कहीं बह गई सड़क तो कहीं बही पटरी
जनता क्या टैक्स इसीलिए देती है ताकि सड़क बह जाए, सबवे डूब जाए पटरी लटक जाए. उफनते नाले, बाइक निगल जाएं. आपको बता दें कि ये सारे वाकये लखनऊ, पीलीभीत, मेरठ जैसे शहरों के हैं. 27 जून को दिल्ली वालों को पता चला कि जो टैक्स भरते हैं. वो डूब जाता है. 3 जुलाई को जयपुर वालों को भी अहसास हो गया कि मानसून में सरकारी विभागों की कारस्तानियों के उजागर होने का मौसम आ गया है. सड़कें कुछ घंटे की बारिश में लापरवाहियों का दलदल बनी दिखने लगीं. लखनऊ वाले भी अछूते नहीं रहे. उनको भी मौका मिला. छह जुलाई को बारिश आई तो बताया गया कि राज्य कोई भी हो. सरकार और सरकारी विभाग कोई भी हो, लेकिन बारिश के बीच जूझने वाले निवासी हर जगह एक हैं. रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक है.
बिहार में एक के बाद एक गिरे कई पुल
इसी कड़ी में बिहार वालों को तो लगातार मौका मिलता रहा. अररिया से लेकर सारण तक. जब ईमानदारी की सीमेंट कम होने से भ्रष्टाचारियों के आगे पुल के पायों ने आत्मसमर्पण कर दिया. कहा, दो बूंद सत्यनिष्ठा की कोई मिला देता तो पुल के पैरों में बेईमानी का पोलियो न होता. बाकी जब तक मुंबई लबालब नहीं डूबती तब तक तो माना भी नहीं जाता कि इस बार मानसून ने एंट्री मारी है.
बारिश में डूबी मुंबई
लिहाजा सोमवार देर रात से डूबती मुंबई ने, रेंगती मुंबई ने कह दिया कि लो जी हमारा भी नाम लिख लो इस बार की डूबगाथा में. जहां सरकारों की विकास वीरता भी डूब जाती है. डूब जाता है ईमानदारी वाला वो टैक्स भी जिसे भरकर जनता सोचती है कि काश इस बार बच गए.
जनता की भावना से सरकारें करती हैं खेल
आपने कभी नहीं देखा होगा कि कोई कहे कि बारिश में सरकारी अव्यवस्था के कारण नाले का पानी भी सड़क पर होने से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं. या कोई कहे कि सिस्टम ने वक्त रहते नाला साफ नहीं कराया तो बारिश में घर में नाले का पानी घुस गया, इसलिए उनकी भावनाएं आहत हो गई हैं. जनता की भावना से सरकारें खेल लेती हैं. बारिश में डुबा देती हैं. मुंबई में बीएमसी का बजट गोवा और मेघालय जैसे राज्यों से भी अधिक है.
हर साल बढ़ता रहा बजट
साल दर साल देखें तो 2017-18 में 25 हजार करोड़ रुपये का कुल बजट बीएमसी का था, जिसमें 698 करोड़ रुपये सीवेज हटाने के लिए था और 475 करोड़ रुपये Storm water Drains के लिए था, जो अगले साल 2018-19 के लिए बढ़कर 27 हजार करोड़ रुपये हो गया. सीवेज हटाने का बजट 760 करोड़ तो Storm water Drains के लिए बीएमसी का बजट 565 करोड़ हो गया. धीरे-धीरे ये स्थिति हो चुकी है कि अबकी 2024-25 में बीएमसी का कुल बजट 59 हजार 954 करोड़ का है. जिसमें सीवेज निस्तारण का हिस्सा 5 हजार 45 करोड़ और स्टॉर्म वॉटर ड्रेन का बजट 1930 करोड़ रुपये हो गया.
बजट बढ़ा पर जनता का नहीं हुआ फायदा
सात-आठ साल में इस बजट पर गौर करें तो पैसा भले बजट में बढ़ता गया. जिसको जनता से ही वसूला जाता है, लेकिन साल दर साल कोई साल ऐसा नहीं बीता जब तेज बारिश में मुंबई में डूबगाथा न आई हो. कहावत पुरानी है कि जितना गुड़ डालोगे, उनता मीठा होगा, लेकिन बीएमसी के बजट में जितना भी पैसा जनता का लगा, उसका उतना फायदा नहीं हुआ.
बारिश में डूबा अंधेरी का सबवे
मानसून की पहली ही तेज बारिश में यूं तो मुंबई के कई इलाके डूबे. कुर्ला से अंधेरी तक. किंग सर्किल से सांताक्रूज तक. मुंबई के आम लोग जानते हैं. बारिश होगी तो अंधेरी का सबवे डूबेगा ही. फिर भी कहीं कोई गलती से सबवे के समंदर बन जाने पर आगे न बढ़े इसलिए देखिए मुंबई के सबवे को जिसे सुबह भी बंद करना पड़ा औऱ फिर बाद में भी. जहां आगे बढ़ना खतरनाक है, ऐसी हालत दिन में कई बार बनती रही.
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24 घंटे में 300 मिमी तक बारिश
एक बार जो अंधेरी सबवे बंद हुआ. मानो उसके खुलने की नौबत ही फिर नहीं आ पाई. शाम तक दावा है कि ऐसे ही हालात रहे. ऊपर से ट्रेन जा रही है. नीचे सबवे में सड़क पर चलना खतरनाक. अंधेरी सबवे के आगे कर्मचारी लोगों को जाने से रोक रहे हैं. अंदर पानी भर चुका है. हो सकता है कि आप कहेंगे कि इतनी बारिश हुई तो क्या किया जा सकता है ? कहने वाले ये भी कह सकते हैं कि 24 घंटे से कम वक्त में जब 300 मिमी तक बारिश हो जाए तो क्या किया जाए?
बारिश होने में जो किया जा सकता है. वही तो नहीं होता है. मुंबई का अंधेरी सबवे कोई पहली बार नहीं डूब रहा. दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में अंधेरी सबवे जैसे विकास की हकीकत बताने वाले स्मारक खड़े हैं.
कब-कब डूबा सबवे
2023 जून के आखिरी में मानसून ने अंधेरी सबवे को डुबाकर बता दिया था कि मुंबई बदली नहीं है.
साल 2011 में भी मुंबई के अंधेरी सबवे बारिश के बाद डूब गया था. ये वो वक्त था जब महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी की सरकार और बीएमसी में शिवसेना थी.
2020 में भी बारिश में मुंबई के अंधेरी सबवे ने डूबकर बता दिया कि वो डूबने के लिए बनाया गया है.
2019 में चुनाव से पहले की बारिश में तब सरकार में बीजेपी शिवसेना दोनों थे. बीएमसी में शिवसेना थी. तब भी अंधरी सब वे डूबा. मानो ये बताने के लिए कि हम ही हैं, वो पैरामीटर जो सरकारी दावों में कितना छेद है, नापकर देख लो.
2017 में भी यही हाल अंधेरी सबवे का हुआ. बारिश के वक्त जनता के लिए इस सबवे को बंद करना पड़ा.
2016 भी मुंबई के अंधेरी सबवे की किस्मत जस की तस रही. हम बस सात साल का ही दिखा रहे हैं. जब चार मुख्यमंत्री हो चुके हैं. शिवसेना, एनसीपी टूट चुके हैं. गठबंधन बदल चुका है. बीएमसी का चुनाव टलता जा रहा है. यानी चाहे पार्टी बदल जाए. सरकार बदल जाए. मुख्यमंत्री बदल जाए. लेकिन मुंबई की डूबगाथा नहीं बदलती. बस बजट बढ़ता जाता है. जनता की जेब से पैसा हर साल बह जाता है.
अरबपतियों की राजधानी मुंबई का ये हाल
ये हाल सोचिए किस मुंबई का है. एशिया में अरबपतियों की राजधानी मुंबई है. मुंबई में 92 अरबपति रहते हैं. अरबपतियों को लेकर मुंबई ने बीजिंग तक को पीछे कर रखा है. एक शहर में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट कहीं हैं तो वो दिल्ली है. क्योंकि मुंबई में छह लोकसभा सीट है. उपनागर मिलाकर यहां 10 लोकसभा सीट है. फिर भी हाल मुंबई का बदलता नहीं है. देश का सबसे बड़ा नगर निगम मुंबई की BMC का ही है. जिसका बजट कई राज्यों के बजट से भी ज्यादा है देश में एक तिहाई डायरेक्ट टैक्स अकेले मुंबई वाले ही भरते हैं. जहां आरबीआई, एसबीआई का मुख्यालय और दलाल स्ट्रीट तक है. उसी मुंबई की गली गली डूबी होती है तो जनता क्या कहेगी. यही कहेगी ना कि क्या इतना टैक्स डूबने के लिए देते हैं?
लखनऊ का हाल भी छिपा नहीं
आप टोल टैक्स देते हैं, लेकिन अब भी किसी हाइवे के टोल बूथ पर पहुंचिए. लाइन लगी मिलेगी. आप रोड टैक्स देते हैं. गड्ढे अब भी रीढ़ की हड्डी का इम्तिहान लेते हैं. वॉट्सएप पर फॉरवर्ड आ जाता है, इधर खुदा है...उधर खुदा है...जहां नहीं खुदाहै...वहां खुदाई चल रही है. यही हाल तो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के विकास नगर का है. जहां नाम में भले विकास लगा हो लेकिन हकीकत में सड़क बही जा रही है.
मेरठ में भी बुरा हाल
उत्तर प्रदेश के मेरठ का भी ऐसा ही हाल है. बारिश में ही ऐसा सरकारी जादू दिखता है. जहां आपको एक स्कूटी खड़ी दिखती है. एक आदमी रेनकोट पहने किनारे बैठा दिखता है. दो लोग उसके पास जाते दिखते हैं. अचानक रेनकोट पहना युवा पानी के भीतर हाथ डालता है. बाकी दो लोग उसकी मदद में हाथ लगाते हैं. अंदाजा भी नहीं लगता है कि पानी से क्या निकाल देंगे. अचानक से पानी के भीतर से पूरी की पूरी मोटर साइकिल निकाल देते हैं. ऐसा जादू आपको कहीं और दिखा क्या, नहीं ना.
कहां नाला-कहां सड़क पता नहीं
मेरठ के जली कोठी इलाके में दो दिन पहले तेज बारिश हुई. कहां नाला है. कहां नाली है. कहां सड़क है. सारा अंतर बारिश ने खत्म कर दिया. बाइक सवार व्यक्ति तभी यहां से गुजरते वक्त नाले में बाइक समेत जा गिरा. यही शख्स बाद में दो लोगों की मदद से नाले में डूबी अपनी मोटरसाइकिल निकालता दिखता है.
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हर साल बारिश में बह जाता है टैक्स
इस पूरी खबर में बारिश तो मात्र जरिया है. असली जादूगर तो यहां सड़क बनाने वाले ठेकेदार और सरकारी विभाग है. जिसने पानी निकलने का ऐसा इंतजाम ही नहीं किया कि सड़क सड़क रहे औऱ नाला नाला. देश में सबसे ज्यादा सांसद भेजने का गर्व करने वाले प्रदेश, जहां भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न से पहले उत्तर पता चल जाते हैं. उसी उत्तर प्रदेश का ये नया लीक कांड है. आप सोचेंगे ये कौन सा लीक है.
यहां सड़क लीक हो गई है. कोई कह रहा है कि जैसे बरसात में छतें आम आदमी की चूने लगती हैं. वैसे ही लखनऊ में विकासनगर की विकासवादी सड़क पर चू रही है. कोई कह रहा है कि अरे ये तो टपक गई है. जहां पहले काली चमचमाती सड़क थी. वो ऐसा लीक हुई कि पातालभेदी गड्ढा नजर आने लगा. 20 फीट गहरा गड्ढा. कुल मिलाकर ये है कि इस देश का आम नागरिक हर बार टैक्स भरेगा और उसके टैक्स का पैसा कभी बारिश से बहती सड़क के रूप में बह जाएगा तो कभी ये पैसा किसी उफनते नाले में डूब जाएगा. सवाल ये है कि क्या यही नियति है.