4 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद से ही, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर हैं. खास बात ये है कि ये राजनीतिक विरोधी भी कोई बाहरी नहीं हैं, बल्कि बीजेपी के अंदर के ही उनके साथी हैं.
लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी कार्यसिमिति की बैठक में योगी आदित्यनाथ ने पहली बार चुप्पी तोड़ी है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के चुनाव प्रदर्शन को लेकर योगी आदित्यनाथ ने जो बातें कही हैं, वो असल में पूरे मामले में उनका राजनीतिक बयान है, और बहुतों के लिए संदेश भी.
चुनावी प्रदर्शन को लेकर योगी आदित्यनाथ की बातें करीब करीब वैसी ही हैं, जैसी 2018 के गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों की हार को लेकर प्रतिक्रिया थी. तब की प्रतिक्रिया तो महज राजनीतिक प्रतिक्रिया भर लगी थी, लेकिन जिस लहजे में नई बात कही गई है, ऐसा लगता है जैसे योगी आदित्यनाथ मजबूती से बचाव के साथ साथ बीजेपी नेतृत्व को भी नहीं बख्शने के मूड में हैं.
तब योगी आदित्यनाथ ने ये समझाने की कोशिश की थी कि सपा-बसपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने को हल्के में ले लिया गया था, इसीलिए बीजेपी चूक गई. तब तो ऐसा लगा था जैसे योगी आदित्यनाथ अपने बारे में कह रहे हों, लेकिन इस बार ऐसा बिलकुल नहीं लगता - वैसे कहने वाले तो यही कहते हैं कि 2024 में भी योगी आदित्यनाथ उम्मीदवारों के चयन को लेकर वैसे ही खफा थे, जैसे 2018 में - दलील दमदार भी लगती है, क्योंकि नतीजे भी करीब करीब वैसे ही आये हैं.
खास बात ये भी रही कि समीक्षा बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा मौजूद थे, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये भी रही कि अमित शाह शामिल नहीं थे. बैठक में योगी आदित्यनाथ के अलावा यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी सहित कई सीनियर नेता और पदाधिकारी भी शामिल थे.
योगी आदित्यनाथ के मुताबिक, बीजेपी यूपी में अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई थी - आखिर योगी ने किसके आत्मविश्वास को चुनौती दी है?
क्या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी नेतृत्व की तरफ इशारा कर रहे हैं? क्या वो 2004 में बीजेपी की हार के जिम्मेदारी इंडिया शाइनिंग जैसे ओवर कांफिडेंस से भरे कैंपेन की तरफ इशारा कर रहे हैं?
क्या 'अति आत्मविश्वास' की बात बीजेपी के हालिया कैंपेन 'अबकी बार 400 पार' पर सवालिया निशान लगा रहे हैं?
चुनाव नतीजे आने के बाद से निशाने पर हैं योगी
बीजेपी की ये समीक्षा बैठक ऐसे वक्त हुई है, जब लोकसभा चुनावों जैसा ही झटका पार्टी को फिर से लगा है. देश के सात राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भी बीजेपी को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है. इन उपचुनावों में इंडिया गठबंधन को 10 सीटों पर जीत मिली है, जबकि बीजेपी को 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. बिहार में एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई है.
और उससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि जल्दी ही उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने वाले हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को सबसे ज्यादा निराश यूपी में ही होना पड़ा है, जहां उसकी सीटें 2019 में मिली 62 से घटकर इस बार सीधे 33 हो गई हैं - और बीजेपी के 240 सीटों पर सिमट जाने की सबसे बड़ी वजह भी यही बनी है. कहां अपने बूते बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी की हालत ये हो गई है कि सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी का सपोर्ट लेना पड़ा है.
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ के भविष्य को लेकर तरह तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थीं, और योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे कैंपेन के खिलाफ धीरे धीरे उनके समर्थकों ने मोर्चा संभाल लिया - अब योगी आदित्यनाथ ने चुप्पी तोड़ते हुए खुद मोर्चा संभाल लिया है.
असल में लोकसभा चुनाव के दौरान अंतरिम जमानत पर छूटने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने योगी आदित्यनाथ को लेकर कहानी सुनाना शुरू कर दिया था. अरविंद केजरीवाल का कहना था कि 75 साल के होने जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिटायर हो जाएंगे, और अमित शाह की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है - और ऐसा होते ही सबसे पहले योगी आदित्यनाथ का पत्ता कट जाएगा.
चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल ने जो शक पैदा करने की कोशिश की थी, नतीजों की वजह से यूं ही गहराने लगा और अटकलों को हवा दी जाने लगी थी. तब तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने भी जगह जगह अरविंद केजरीवाल की बातो को खारिज करने की कोशिश की, लेकिन चुनाव नतीजों के बाद अलग ही राजनीति शुरू हो गई.
ये योगी का पलटवार है, या बचाव का तरीका?
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पलटवार में नेतृत्व पर निशाना साधने के साथ साथ मजबूती से अपना बचाव भी करते हैं. मुख्यमंत्री योगी कहते हैं, याद करिये मोहर्रम के समय में सड़कें सूनी हो जाती थीं... आज मोहर्रम के वक्त इसका पता भी नहीं लग रहा है... ताजिया के नाम पर घर तोड़े जाते थे, पीपल के पेड़ काटे जाते थे, सड़कों के तार हटाए जाते थे... आज कहा जाता है किसी गरीब की झोपड़ी नहीं हटेगी. आज कहा जाता है कि सरकार नियम बनाएगी, त्योहार मनाने हैं तो नियम के तहत मनाओ नहीं तो घर बैठ जाओ... अब ये मनमानापन नहीं चल सकता.
हार पर अपनी बात रखते वक्त योगी आदित्यनाथ शुरुआत तो प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के साथ करते हैं, लेकिन लगे हाथ जो कहना चाहते हैं, बोल भी देते हैं. कहते हैं, प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में हमने विपक्ष पर लगातार दबाव बनाए रखा... और उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सफलता हासिल की... चाहे 2014, 2019 लोकसभा चुनाव हों या 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव... इस बार भी पहले जितना ही बीजेपी को वोट मिला है - लेकिन वोटों में बदलाव और अति-आत्मविश्वास ने हमारी उम्मीदों को नुकसान पहुंचाया.
आखिर ये अति-आत्मविश्वास किसका है? उनकी बातों से इस बार ऐसा तो नहीं लगता कि योगी आदित्यनाथ अपनी बात कर रहे हैं - तो क्या योगी आदित्यनाथ के ऐसा बोलने का आशय बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के ओवर-कॉन्फिडेंस से है?
क्या योगी आदित्यनाथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान की भी याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नाराजगी की वजह बना था. जेपी नड्डा ने कहा था, 'भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है... इसलिए अब संघ के समर्थन की जरूरत नहीं है.'
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जिस उत्तर प्रदेश में राम मंदिर बन चुका हो, उसी साल चुनावी हार हार यूं ही हजम कैसे हो सकती है. हकीकत को कबूल तो करना ही पड़ता है.
वैसे योगी आदित्यनाथ की बातें तो निशाने पर गहरी चोट करती प्रतीत भी हो रही हैं. कहां बीजेपी ने 2019 में अमेठी की ही तरह इस बार रायबरेली से भी राहुल गांधी को हराने का प्लान बनाया था, और कहां समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय विधायक से अयोध्या भी गवां बैठी. और अयोध्या ही क्यों, हारी हुई सीटों की सूची में ऐसी बहुत सी हैं, जो बीजेपी का गढ़ मानी जाती रही हैं - और तो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत के अंतर को कहां 10 लाख तक पहुंचाने की बात चल रही थी, और कहां पिछले दो चुनावों से भी घट गई.
बेशक योगी आदित्यनाथ बचाव और आक्रमण दोनो पर जोर दे रहे हैं, लेकिन जन्नत की हकीकत मालूम तो उनको भी है. कोविड के वक्त क्या हाथ हो गया था, कैसे लोग परेशान थे. कैसे मोदी-शाह ने आगे बढ़ कर योगी आदित्यनाथ को क्लीन चिट देते हुए ऐसा जोरदार कैंपेन किया कि लोग सारे गम भुला ही गये - और बीजेपी की सत्ता में वापसी के साथ योगी आदित्यनाथ फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गये.
तब तो अमित शाह चुनावी रैलियों में योगी आदित्यनाथ के लिए भी मोदी के नाम पर ही मांगते देखे गये थे - योगी को मुख्यमंत्री बनाइये, ताकि 2024 में मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनें. मोदी प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन यूपी के लोगों ने बीजेपी को विधानसभा की तरह वोट बिलकुल नहीं दिया.
अब अगला पड़ाव 2027 है. ध्यान रहे, चुनावी जीत ही सबसे ज्यादा मायने रखती है. स्मृति ईरानी बेहतरीन मिसाल हैं.