दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को शिकस्त का सामना करना पड़ा है. इस चुनाव में वह बीजेपी के प्रवेश वर्मा से 4 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए. अब एक बड़ा सवाल ये है कि इस हार के बाद अब केजरीवाल का क्या होगा? उनके पास अब कोई संवैधानिक पद नहीं है और ना ही वह वर्ष 2028 से पहले राज्यसभा के सांसद बन सकते हैं.
पंजाब में राज्यसभा के चुनाव वर्ष 2028 में होंगे और दिल्ली में वर्ष 2030 में होंगे और इसलिए केजरीवाल को अब सिर्फ आम आदमी पार्टी का संयोजक बनकर रहना होगा. ये पद भी उनके पास कितने दिन रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. शराब घोटाले में ED ने पूरी आम आदमी पार्टी को ही आरोपी बनाया है और अगर पार्टी अदालत में दोषी साबित हो जाती है तो ये पार्टी भी खत्म हो जाएगी, और केजरीवाल के पास संयोजक का पद भी नहीं रह पाएगा.
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ऐसी स्थिति में केजरीवाल अभी जिस सरकारी बंगले में रह रहे हैं, वो भी उन्हें खाली करना पड़ेगा. इन नतीजों से ये भी स्पष्ट हो गया है कि अब केजरीवाल की उस शीशमहल में वापसी नहीं होगी, जिस पर करोड़ों रुपये खर्च हुए थे. असल में ये शीशमहल केजरीवाल के लिए काफी अशुभ रहा और वो इसमें रह ही नहीं पाए. पहले उन्हें जेल जाना पड़ा और अब वह चुनाव हार गए हैं.
क्या शीशमहल में जाकर रहेगा BJP का सीएम?
एक बड़ा सवाल ये भी है कि बीजेपी जिस नेता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाएगी, क्या वो मुख्यमंत्री इस शीशमहल में जाकर रहेगा? और इस शीशमहल का अब होगा क्या? क्या इसकी भी जांच कराई जाएगी? पिछले साल केजरीवाल ने ये कहते हुए मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था कि अब वह तभी सरकार का नेतृत्व करेंगे, जब जनता चुनावों में उन्हें वोट देकर शराब घोटाले के आरोपों से मुक्त कर देगी.
केजरीवाल कहा करते थे कि अगर जनता उन्हें जेल में देखना चाहती है तो वो बीजेपी को वोट दे सकती है और आज ऐसा ही हुआ, और लोगों ने केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी अपना फैसला सुना दिया. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से उसके 48 यानी 69 प्रतिशत उम्मीदवार आज चुनाव हार गए हैं, और इनमें कई बड़े नेताओं के नाम हैं.
नई दिल्ली सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 4 हजार वोट से हार गए. जंगपुरा सीट से मनीष सिसोदिया 675 वोटों से हार गए. ग्रेटर कैलाश से सौरभ भारद्वाज 3 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए. मालवीय नगर से सोमनाथ भारती 2100 वोट से हार गए, और शकूर बस्ती से सत्येंद्र जैन 21 हजार वोट से हार गए. इनमें केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन, कुछ समय पहले तक जेल में थे और बाद में जमानत पर बाहर आकर उन्होंने ये चुनाव लड़ा था.
अरविंद केजरीवाल के भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिन्ह!
दिल्ली के चुनावी नतीजों ने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया. साल 2013 में जिस दिल्ली से केजरीवाल ने राजनीति में चौंकाने वाली राजनीति का आगाज किया था. उसी दिल्ली ने केजरीवाल के करिश्मे की कहानी पर विराम लगा दिया. केजरीवाल के हाथ से दिल्ली की सत्ता को बीजेपी ने छीन लिया.
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ये हार केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है क्योंकि ना पार्टी को बहुमत मिला और ना ही केजरीवाल समेत तमाम दिग्गज नेता चुनाव जीत सके. दिल्ली चुनाव में मिली करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के भविष्य पर उठ रहे सवालों का जवाब अरविंद केजरीवाल ने दिया ह.
दस साल तक, दिल्ली की सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथों में रही. साल 2015 के चुनाव हो या फिर 2020 के चुनाव. केजरीवाल के चेहरे पर दिल्ली ने आम आदमी पार्टी को दिल खोलकर वोट दिया, लेकिन 2025 विधानसभा के चुनाव में ना तो केजरीवाल का चेहरा काम आया और ना ही मुफ्त वाली योजनाओ के लाभार्थियों का वोट मिला. नतीजा ये हुआ कि 2020 के चुनाव में 70 में से 62 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई.
आम आदमी पार्टी को 40 सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. अगर वोट शेयर की बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी वोट हासिल किया था, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी का वोट शेयर 44 फीसदी पर आ गया. मतलब 10 फीसदी वोट का घाटा आम आदमी पार्टी को हुआ, वोट शेयर में आई यही गिरावट अरविंद केजरीवाल को मिली शिकस्त की सबसे बड़ी वजह बन गई.
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली में मिली हार ने अवरिंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी है. आने वाला वक्त निजी तौर पर केजरीवाल के लिए बहुत चुनौतीभरा रहने वाला है, क्योंकि शराब घोटाले से लेकर शीशमहल का मुद्दा उनका पीछा छोड़ने वाला नहीं है. दिल्ली में जीत से उत्साहित बीजेपी सांसद ने तो केजरीवाल के दोबारा जेल जाने की भविष्यवाणी तक कर डाली.
घोटालों के आरोप में जेल गई आप की लीडरशिप
चाहे अरविंद केजरीवाल हो, मनीष सिसोदिया हो, संजय सिंह या फिर सतेंद्र जैन, आम आदमी पार्टी की टॉप लीडरशिप घोटाले के आरोपों में बेल पर जेल से बाहर है. यानी कानूनी चक्रव्यूह में फंसे नेताओं का भविष्य अधर में हैं, सत्ता से बाहर होने के बाद संभव है कि इन नेताओं पर कानूनी फंदा सके, लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी का इशारा यही है कि हार के बाद भी पार्टी के हौंसले में कोई कमी नहीं आई है.
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केजरीवाल और उनकी पार्टी के सामने चुनौती का अंबार है, या यूं कहें चुनौतियों का पिटारा मानों खुल गया है. एक तरफ दिल्ली में अपनी पार्टी को बचाए रखना और नए विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती है, तो दूसरी तरफ पार्टी के राष्ट्रव्यापी विस्तार के प्लान को आगे बढ़ना किसी चुनौती से कम नहीं. अभी तक देश के दो हिस्सों में आम आदमी पार्टी की सरकार थी. दिल्ली का मॉडल था लेकिन अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बची हैं.
ऐसे में दिल्ली में केजरीवाल मॉडल के फेल होने से निकला संदेश आम आदमी पार्टी के ऑल इंडिया प्लान पर पानी फेर सकता है, क्योंकि केजरीवाल के चेहरे पर ही आम आदमी पार्टी पूरे देश में अपने पैर जमाने की कोशिश में है. अगर पार्टी का सबसे चमकदार चेहरा ही चुनावी रण में चारों खाने चित हो गया तो दूसरे राज्यों में पार्टी का विस्तार कैसे होगा.
सरल शब्दों में समझे तो दिल्ली की हार का असर सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं रहेगा. इसका असर केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के वजूद पर पड़ेगा, क्योंकि दिल्ली की लड़ाई, असल मायने में केजरीवाल के वजूद की लड़ाई थी, और वजूद की लड़ाई में केजरीवाल को हार का सामना करना पडा है.
क्यों केजरीवाल के साथ, दिल्ली में खेला हो गया?
दो बार ठसक और धमक के साथ दिल्ली की सत्ता लेकिन तीसरी कोशिश में टीम केजरीवाल मुंह के बल गिरी. पिछले 5 सालों में दिल्ली की राजनीति बहुत गर्म रही. केजरीवाल एंड कंपनी पर तमाम सवाल उठे, लेकिन केजरीवाल सवालों को नकारते रहे. दिल्ली की राजनीति में झाड़ू लगाने वाली पार्टी अब दिल्ली में साफ हो गई.
दिल्ली के इस चुनाव में ब्रांड केजरीवाल ध्वस्त हो चुका है. जी हां, करप्शन के खिलाफ, जो चेहरा एकदम उभरकर आया था, स्वस्छ शासन और प्रशासन देने की समझ रखने का जिसने वादा किया था, जिसे राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस से इतर विकल्प माना गया, लेकिन केंद्र की एजेंसियों के हत्थे चढ़ने के बाद, केजरीवाल ने बहुत कुछ गंवाया, और अब दिल्ली के नतीजों ने 'ब्रांड केजरीवाल' को बेरंगत कर दिया है.
दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली माफ, 400 यूनिट तक हाफ, इस नारे के साथ आप ने दिल्ली में फ्रीबीज पॉलिटिक्स से जो तहलका मचाया था. अब उसी फ्रीबीज पॉलिटिक्स ने आप को दिल्ली से साफ भी कर दिया, क्योंकि इसी दफा भी केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त की योजनाओं के सहारे ही चुनाव लड़ा.
आप में ठहराव भी केजरीवाल की हार का कारण बना. गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक समेत कुछ और राज्यों केजरीवाल ने पार्टी की नींव डाली लेकिन पूरी इमारत कहीं नहीं बनी. कई जगह तो नींव के ईंट-रोड़े ही बिखर गए. अब अगले 5 साल केजरीवाल दिल्ली में अपने वजूद को वापस पाने पर फोकस करने के लिए मजबूर हो सकते हैं. इनके अलावा, करप्शन के घेरे ने भी, केजरीवाल की पार्टी को दिल्ली में ध्वस्त कर दिया.
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केजरीवाल की करप्शन मामले में बढ़ सकती है मुश्किल
केजरीवाल और उनके तमाम बड़े चेहरे हाल ही में जेल से लौटे हैं. अब इन्हें दिल्ली की उस जनता ने नकार दिया है. ऐसे में आने वाले समय में केजरीवाल और उनके साथियों की मुश्किलें करप्शन के मामलों में बढ़ सकती हैं. दिल्ली में केजरीवाल वाल की हाल का कारण, कांग्रेस और आप के बीच कड़वाहट भी बनी है. दिल्ली के चुनाव प्रचार में कांग्रेस के अल्फाज आप के लिए बड़े ही तीखे रहे.
बमुश्किल 8 महीने हुए हैं. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप दिल्ली में साझीदार थे लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों में दोनों ने अपने रास्ते जुदा कर लिए. आप के खिलाफ कमोबेश बीजेपी की ही लाइन पर कांग्रेस दिखी, और नतीजा ये हुआ कि दिल्ली में 13 विधानसभा ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस ने आप का खेल खराब कर दिया.
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को 22 सीटें मिली हैं, अगर कांग्रेस खेल ना बिगाड़ती को ये आंकड़ा 35 तक पहुंच सकता था, यानी दिल्ली की सत्ता पर खेल कुछ और ही होता. अब केजरीवाल का व्यक्तित्व और मिजाज जिस तरह का रहा है उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि वो कांग्रेस की इस अदावत को शायद लंबे वक्त तक याद रखेंगे.
दिल्ली में हारे हुए और खुद अपनी सीट पर कांग्रेस के वोट कटवा संदीप दीक्षित की वजह से खार खाए केजरीवाल कई जगहों पर कांग्रेस के लिए खेल बिगाड़ सकते हैं. हालांकि लंबी अवधि में आप से स्पष्ट दूरी कांग्रेस के लिए लाभ का सौदा होगी या फायदे का, ये अलग विश्लेषण का विषय है.