ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज से भी 600 साल पहले बना था नालंदा, क्यों खिलजी ने मिटा दिया इसका नाम?

7 months ago 11

नालंदा विश्वविद्यालय  करीब 800 साल के लंबे इंतजार के बाद पुराने स्वरूप में लौट रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का उद्घाटन कर दिया है. नए कैंपस के उद्घाटन की खबरों और नई तस्वीरों के बीच इसके इतिहास की बात भी की जा रही है. दरअसल, दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा अपने साथ इतना प्राचीन इतिहास समेटे हुए हैं, जिसे लेकर कई किताबें लिखी गई हैं. कहा जाता है कि जब दुनिया में विश्वविद्यालय बनना शुरू हुए थे, उस वक्त नालंदा कई सौ सालों की अपनी लेगेसी बना चुका था. 

तो नए कैंपस के उद्घाटन के मौके पर आज आपको बताते हैं कि नांलदा की कहानी, जिसमें पता चलेगा कि विश्वविद्यालय का क्या इतिहास है, यहां से किन महान लोगों ने पढ़ाई की है और किस तरह की पढ़ाई के लिए नालंदा जाना जाता था. तो पढ़ते हैं नालंदा के बारे में... 

कितना पुराना है नालंदा?

जब भी दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी की बात होती है तो दिमाग में ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज के नाम आते हैं. लेकिन, नालंदा विश्वविद्यालय उससे भी काफी पहले का है. नालंदा तीन शब्दों से मिलकर बना है- ना, आलम और दा. इसका मतलब है ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है. इसे 5वीं सदी में गुप्त काल में बनाया गया था और 7वीं शताब्दी तक यह महान यूनिवर्सिटी बन चुकी थी. 

 यह एक विशाल बौद्ध मठ का हिस्सा था और कहा जाता है कि इसकी सीमा करीब 57 एकड़ में थी. इसके अलावा कई रिपोर्ट्स में इसे और भी बड़ा होने का दावा किया जाता है. कुछ रिकॉर्ड्स के मुताबिक यह आम के बगीचे पर बनी थी, जिन्हें कुछ व्यापारियों ने गौतम बुद्ध को दिया था. 

19वीं सदी में चला पता

वहीं मॉडर्न वर्ल्ड को इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था. कई सदी तक ये विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था. 1812 में बिहार में लोकल लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर अध्ययन किया. इसके बाद इसके बारे में पता चला. 

कौन-कौन पढ़ने आते थे?

नालंदा विश्वविद्यालय इस वजह से खास था, क्योंकि समय समय पर यहां महान शिक्षकों ने पढ़ाई करवाई थी. इन महान शिक्षकों में नागार्जुन, बुद्धपालिता, शांतरक्षिता और आर्यदेव का नाम शामिल है. वहीं अगर यहां पढ़ने वालों की बात करें तो यहां कई देशों से लोग पढ़ने आते थे. चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग भी यहां से पढ़े हैं. ह्वेन सांग, नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे. ह्वेन सांग ने 6 साल तक नालंदा विश्व विद्यालय में रहकर कानून की पढ़ाई की थी.  

कितना विशाल था कैंपस

इस विश्वविद्यालय की भव्यता इतनी थी कि यहां 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और पढ़ाई के लिए 9 मंजिला एक लाइब्रेरी थी. साथ ही यह कई एकड़ में फैला हुआ था. यहां हर सब्जेक्ट के गहन अध्ययन के लिए बनाई गई थी 9 मंजिला लाइब्रेरी, जिसमें 90 लाख से ज्यादा किताबें रखी हुई थी. बताया जाता है कि जब इसमें आग लगाई गई तो इसकी लाइब्रेरी 3 महीने तक जलती रही, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसमें कितनी किताबें रही होंगी. इस विश्वविद्यालय की कहानी बताती है कि भारत का ज्ञान सदियों से दुनिया को रोशन कर रहा है. इसके अलावा कुछ रिकॉर्ड्स अल चीं नू की ओर से पहले हमला होने की बात कही थी.

क्या क्या पढ़ाया जाता था?

इस विश्वविद्यालय को ज्ञान को भंडार माना जाता रहा है. यहां धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी,लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई सब्जेक्ट पढ़ाया जाता था.कहा जाता है कि उस दौर में जो सब्जेट यहां पढ़ाए जा रहे थे, वो कहीं भी नहीं पढ़ाए जा रहे थे. ये यूनिवर्सिटी 700 साल तक दुनिया को ज्ञान के मार्ग ले जाती रही.

क्या है विध्वंस की कहानी?

हालांकि नालंदा को कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा. अपने 700 साल के लंबे सफर के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने एक हमले इसे जला दिया. कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया. उसके बाद उसका इलाज कई तरीकों से किया गया और इसे लेकर कई तरह की कहानियां है. कहा जाता है कि अपने इलाज से नाखुश होने के बाद गुस्से में खिलजी ने इसे जलवा दिया था. 
 

Article From: www.aajtak.in
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