महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेस को देखा गया था, लेकिन विधानपरिषद चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान उसी को हुआ है - क्योंकि कांग्रेस के 7 विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने की खबर आई है.
विधान परिषद की 11 सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे, और 12 उम्मीदवार मैदान में थे. महायुति में बीजेपी के 5 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे, जबकि शिवसेना और एनसीपी ने दो-दो उम्मीदवार उतारे थे. महाविकास आघाड़ी ने 3 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.
महायुति के तो सभी 9 उम्मीदवार जीत गये, लेकिन महाविकास आघाड़ी के दो ही उम्मीदवा जीत पाये. शिवसेना उद्धव गुट के मिलिंद नार्वेकर, जिन्हें उद्धव ठाकरे का करीबी माना जाता है, और कांग्रेस की प्रज्ञा सातव ने भी चुनाव जीत लिया है, लेकिन शरद पवार वाली एनसीपी समर्थित उम्मीदवार जयंत पाटिल चुनाव हार गये हैं - दूसरी तरफ, बीजेपी के पूरे 5, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 2 और डिप्टी सीएम अजित पवार की एनसीपी के भी दोनों उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली.
लोकसभा चुनावों में महाविकास आघाड़ी ने 30 सीटें जीत कर मैसेज तो यही दिया है कि महाराष्ट्र के लोग बीजेपी से नाराज हैं, और उसके सहयोगी दलों पर उनको उतना भरोसा नहीं रहा. सत्ताधारी महायुति को लोकसभा चुनाव में 17 सीटें ही मिल पाई थीं. बाद में विधान परिषद की चार सीटों के लिए चुनाव हुए तो मुकाबला 2-2 से बराबरी पर रहा, लेकिन अब तो 13 सीटों के मुकाबले में बाजी 9-2 पर छूटी है - और सबसे बड़ी हैरानी की वजह है जयंत पाटिल की हार की वजह.
अव्वल तो जयंत पाटिल की हार की वजह खोजी ही जा रही है, लेकिन अब तक जो पता चला है उसके मुताबिक हार कारण कांग्रेस विधायकों की क्रॉसवोटिंग बना है - और ये विधानसभा चुनावों के लिहाज से एमवीए के लिए बिलकुल भी अच्छा संकेत नहीं है.
महाराष्ट्र कांग्रेस में चल क्या रहा है
कांग्रेस के 7 विधायकों की क्रॉस वोटिंग को समय रहते समझ लेना बेहद जरूरी है. हिमाचल प्रदेश में तो कांग्रेस ने हिसाब करीब करीब बराबर ही कर लिया था, लेकिन महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले ये बहुत महंगा पड़ सकता है. राज्यसभा चुनाव के दौरान कुछ कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी, जिन्हें कांग्रेस ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने शिवसेना और एनसीपी जैसा खतरा मंडरा रहा है. सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस के जिन विधायकों ने विधान परिषद चुनाव में क्रॉस वोटिंग की है, उनको सत्ताधारी महायुति के नेताओं का संरक्षण मिला हुआ है. ये भी जरूरी तो नहीं कि जिन विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है, सिर्फ वे ही महायुति के नेताओं का संरक्षण ले रहे हों. जितने वोट की जरूरत थी, उतनी क्रॉस वोटिंग हो गई, लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए तो और भी कतार में हो सकते हैं.
कांग्रेस विधायकों की क्रॉस वोटिंग इसलिए भी गंभीर मामला है, क्योंकि ये दोनो गठबंधनों की तैयारियों की झलक दिखा रहा है. लोकसभा चुनाव की हार के बाद बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियां नुकसान की भरपाई में जुट गई हैं, जबकि कांग्रेस ऐसी चीजों से बेपरवाह नजर आ रही है.
कहने को तो महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों पर कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी एक बात काफी अजीब भी लगती है. नाना पटोले का कहना है, हमने जाल बिछाया था, जाल में बदमाश फंस गये.
अगर नाना पटोले की बात मान भी लें तो एक बात तो साफ है, कांग्रेस की अंदरूनी कहल बाहर आ गई है, जबकि बीजेपी और उसके साथियों का चुनाव प्रबंधन सही ट्रैक पर चल पड़ा है. इस मामले का दूसरा पहलू ये भी है कि कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार तो जीत गये हैं, लेकिन शरद पवार ने जिसका समर्थन किया था, वो हार गया है - क्या ये बाद शरद पवार को फूटी आंख भी सुहा रही होगी.
गठबंधन में तकरार बढ़ना तो तय लग रहा है
महाविकास आघाड़ी की मुश्किल सिर्फ कांग्रेस की अंदरूनी कलह ही नहीं है, गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच भी जबरदस्त तकरार है - और ऐसा भी नहीं कि सिर्फ नाना पटोले ही उद्धव ठाकरे से नाराज चल रहे हैं, शरद पवार भी विधानसभा चुनावों में किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं हैं.
1. शरद पवार सीटों पर समझौता नहीं करने जा रहे हैं
जून, 2024 में शरद पवार वाले एनसीपी की पुणे में एक मीटिंग हुई थी. मीटिंग के बाद पुणे शहर के NCP (शरद पवार) प्रमुख प्रशांत जगताप ने बताया, शरद पवार ने हमें बताया है कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कम सीटों पर इसलिए चुनाव लड़ा था, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि शिवसेना (UBT) और कांग्रेस के साथ गठबंधन बरकरार रहे.
लेकिन जगताप के मुताबिक, अब शरद पवार का कहना है कि विधानसभा चुनाव में तस्वीर बिलकुल अलग होगी.
2. उद्धव ठाकरे ही MVA के नेता होंगे, अब पक्का नहीं है
हाल ही में संजय राउत ने कहा था कि महाविकास आघाड़ी को अपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देना चाहिये. संजय राउत ने कोविड के दौरान मुख्यमंत्री रहते उद्धव ठाकरे के काम का हवाला देते हुए ये समझाने की कोशिश की कि उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता के कारण ही लोकसभा चुनाव में एमवीए को वोट मिले.
लेकिन मीडिया ने जब संजय राउत के बयान का हवाला देते हुए शरद पवार से पूछा, तो बोले - 'हमारा गठबंधन, हमारा सामूहिक चेहरा है... एक व्यक्ति हमारे गठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हो सकता... सामूहिक नेतृत्व हमारा फॉर्मूला है... हमारे तीनों गठबंधन सहयोगी चर्चा करके फैसला लेंगे.
3. नाना पटोले अलग ही अंगड़ाई ले रहे हैं
कुछ ही दिन पहले शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद के लिए भी चुनाव हुए थे. उम्मीदवारों की घोषणा को लेकर नाना पटोले ने उद्धव ठाकरे के फैसले पर सवाल उठाते हुए अपनी नाराजगी जताई थी. नाना पटोले का दावा था कि गठबंधन सहयोगियों से सलाह किए बिना उद्धव ठाकरे ने उम्मीदवार की घोषणा कर दी.
नाना पटोले की नाराजगी स्वाभाविक भी है, क्योंकि सुनने में ये भी आया है कि उद्धव ठाकरे ने सीधे दिल्ली बात कर ली थी. ये ठीक है कि नाना पटोले, राहुल गांधी के करीबी और भरोसेमंद हैं, लेकिन नाराज होना उनका हक तो है ही.
कुछ बातें तो साफ हैं, लेकिन कुछ आशंकाएं भी हैं. लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव तो एक जैसे होते हैं, लेकिन विधान परिषद उससे अलग का मामला होता है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीधे जनता वोट देती है, लेकिन विधान परिषद चुनाव में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि.
ऐसे में ये सीधे सीधे जरूरी नहीं है कि विधानसभा के नतीजे भी विधान परिषद जैसे हो सकते हैं, लेकिन कई चीजें ऐसी आशंकाओं को जन्म जरूर देती हैं. और वो है, कांग्रेस के भीतर गुटबाजी के साथ साथ महाविकास आघाड़ी में बढ़ती तकरार - अगर शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी से मिलकर इस मुश्किल का तत्काल प्रभाव से समाधान नहीं खोजा तो लेने के देने पड़ना पक्का मान कर चलना चाहिये.